यह मेरे लिए गर्व की बात है कि काले हीरे की अद्भुत नगरी कोरिया में मुझे पदस्थ हुए आज एक वर्ष हो गए हैं। इस एक वर्ष में खट्टे-मीठे अनुभवों के अलावा कई यादगार पलों को भी संजोने का अवसर मिला है। प्रकृति की गोद और हरियाली की चादर से ढंके इस कोरिया ने मुझे भरपूर प्यार दिया, सहयोगी पड़ोसी दिए, चुलबुले मित्र दिए, सम्मान दिया और साथ ही सीख-सबक का नया अनुभव भी दिया है।
जनसम्पर्क और मीडिया एक सिक्के के दो पहलू हैं। इस नाते यहां के तमाम प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया प्रतिनिधियों का आत्मीयता अद्भुत रहा। उनके सहयोगी स्वभाव और दीर्घ अनुभव का लाभ निरन्तर प्राप्त हुआ और हो रहा है।कोरियावासियों का शुक्रिया जिनके भोलेपन और उदारता से निरन्तर मुझे सम्बल मिलता रहा है।
31 जुलाई निश्चित ही अनेक घटनाओं के साक्षी होंगे लेकिन मेरे कैरियर के लिए यह दिन एक नए अध्याय, अनुभव और नई सीख के लिए याद रखा जाएगा। यहाँ के मेहमान नवाजी और मुंह को पान से लाल करने की परंपरा ने तन और मन को गुदगुदाने को विवश कर दिया है।
यहाँ के गांवों और मोहल्लों के नाम कुछ दिनों तक अटपटे लगे। इस जिले में पटना है, तो नागपुर और नगर भी। एक मोहल्ले का नाम प्रेमाबाग भी है। कहा जाता है रियासत काल के दौरान एक दीवान की पत्नी का नाम प्रेमा बाई था, उनकी याद में पगडण्डी रास्ते के किनारे बड़ी संख्या में आम के पौधे लगाए गए थे और मन्दिर निर्माण किया गया था। वहीं एक कुंड भी है जिसे प्रेमा कुंड कहा जाता है। वर्तमान जनपद पंचायत कार्यालय में रियासतकाल के दौरान प्रिंटिंग प्रेस हुआ करता था, उस प्रिंटिंग प्रेस से प्रेमाबाग सीधे दिखाई पड़ता था। इस प्रिंटिंग प्रेस से ‘आलोक’ पत्रिका की छपाई की जाती थी।
इसी तरह सोनहत, बैकुंठपुर आदि शहरों, कस्बों और गांवों के नाम के पीछे भी बहुत किस्से सुनने को मिले हैं। मन को सुकून, तन को राहत देने वाले यहां के पर्यटन स्थल और शुद्ध हवाओं की महक भी मुझे कोरिया ने महसूस कराई है। कड़कती ठंड और अंगीठी के ताप की अहसास भी कोरिया ने बखूबी कराया है।
इस आदिवासी अंचल में ऐसे कई मेधावी और प्रतिभावान बच्चों व युवाओं से रूबरू होने का अवसर भी कोरिया ने साझा कराया है। मेहनतकश इस जिले को ‘मिनी इंडिया’ भी कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी! एसईसीएल कॉलरी क्षेत्र चरचा शहर में बड़ी संख्या में उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश सहित देश के अलग-अलग राज्यों के लोग निवासरत हैं। यहां की बोली-भाषाओं और पंडो जातियों के खानपान भी लाजवाब हैं।
विधानसभा और लोकसभा निर्वाचन जैसे चुनौतीपूर्ण अवसरों पर उचित समन्वय से बेहतर कार्य संपादित करने का अवसर भी कोरिया ने दिया है! ‘हरित कोरिया’ के जिला प्रशासन सहित मेरे विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों, सहयोगियों के सतत मार्गदर्शन ने मुझे पगडण्डी रास्ते पर संतुलन बनाकर चलने का हुनर सिखाया।
हमारे जिला कार्यालय के अधिकारी ने मुझे छोटे भाई की तरह स्नेह व सभी कर्मियों के दुलार, हंसी-मजाक ने मुझे परिवार की कमी को कुछ हद तक कम करने में मदद की।
कोयलांचल की धरती कहें या काले हीरे का शहर, कोरिया ने अपनी सादगी, सहयोगी और सक्रियता से दिल जीता। सावन के झूले की तरह मन को हिलोरें भी दी। कोरिया के होली, दीपावली, ईद और क्रिसमस जैसे पर्वों ने आपसी सद्भाव की सीख सिखाई और गेज नदी की गहराई में तैरने का आनंद भी दिया।
यहाँ की प्रसिद्ध झुमका डेम को देखकर मन झूमने को आतुर हो जाता है। घुनघुट्टा डेम तो मानो गोवा की सैर कराने जैसा अनुभव देती है। वहीं बालम पहाड़ की नयनाभिराम दृश्य आँखों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि दिलों में भी घर बना लिए हैं। सचमुच कोरिया को ‘सुकून कोरिया’ भी कह सकते हैं! इस 365 दिनों में कोरिया की माटी ने मेरे जीवन में एक नई उमंग, उत्साह, ऊर्जा और सकारात्मक विचारों का संचार किया है।
आभार कोरिया, शुक्रिया कोरिया, इस नाचीज़ को माँ की तरह अपनी हरियाली आँचल में पनाह देने के लिए कृतज्ञ हूँ।
(विजय मानिकपुरी)